Vasti Karma

वस्ति (enima) वह क्रिया है, जिसमें गुदामार्ग, मूत्रमार्ग, अपत्यमार्ग, व्रण मुख आदि से औषधि युक्त विभिन्न द्रव पदार्थों को शरीर में प्रवेश कराया जाता है। वस्ति आस्थापन वस्ति, अनुवासन वस्ति वस्ति वह क्रिया है, जिसमें गुदमार्ग, मूत्रमार्ग, अपत्यमार्ग, व्रण मुख आदि से औषधि युक्त विभिन्ना द्रव पदार्थों को शरीर में प्रवेश कराया जाता है। मूत्र मार्ग तथा अपत्य मार्ग से दी जाने वाली वस्ति उत्तर वस्ति कहलाती है तथा व्रण मुख (घाव के मुख) से दी जाने वाली वस्ति व्रण वस्ति कहलाती है। वस्ति को वात रोगों की प्रधान चिकित्सा कहा गया है। आस्थापन वस्ति में विभिन्न औषधि द्रव्यों के क्वाथ (काढ़े) का प्रयोग किया जाता है। अनुवासन वस्ति में विभिन्न औषधि द्रव्यों से सिद्ध स्नेह का प्रयोग किया जाता है। वस्ति के योग्य रोग- अंग सुप्ति, जोड़ों के रोग, शुक्र क्षय, योनि शूल आदि। वस्ति के अयोग्य रोगी- भोजन किए बिना अनुवासन वस्ति तथा भोजन के उपरांत आस्थापन वस्ति के प्रयोग का निषेध है। साथ ही अतिकृश, कास, श्वास, जिन्हें उल्टियाँ (वमन) हो रही हों, उन्हें वस्ति नहीं देना चाहिए।

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