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Tumhara mandap meri barat

by Anurag Gupta, 16 Mar 2025

तुम्हारा मंडप, जहाँ सपनों की चौखट सजती,
मेरी बारात, जहाँ वचन संग मुस्कान बंधती।
तुम्हारे घूँघट की शर्मीली छाँव,
मेरी आँखों में उतरी दुआओं की ठाँव।

तुम दीपक की लौ, मैं बाती का साथ,
तुम मंदिर की घंटी, मैं गूंजती प्रार्थना की बात।
तुम सावन की पहली बूँद, मैं सूखी धरती की प्यास,
तुम्हारे बिना अधूरा, जैसे बिना धड़कन के साँस।

तुम चाँदनी रात, मैं कोई अनजान नदी,
तुम्हारी रोशनी में ही बहूँ, हर राह हो सही।
तुम हो कंगन की खनक, मैं पायल की रुनझुन,
साथ चले जो दोनों, तब गूँजे प्रेम का मधुर संगुन।

तुम सिंदूर की लालिमा, मैं माँग का विस्तार,
तुम संग हो तो हर रंग लगे मुझको खुशगवार।
तुम्हारी चूड़ियों की झंकार, मेरे दिल की धड़कन,
तुम संग जो बीते लम्हा, वही हो मेरा जीवन।

तुम अगर हो फूल, तो मैं तुम्हारी डाली,
तुम अगर हो सुबह, तो मैं पहली लाली।
तुम्हारे बिना मेरा कौन सा अस्तित्व,
मैं हूँ अधूरा, जैसे शब्द बिना ग्रंथ।

तुम्हारा मंडप, मेरी बारात,
तुम मेरी मंज़िल, मैं तेरा साथ।
राहें चाहे कोई भी आएं,
तेरे हाथों में मेरा हाथ हमेशा आए।