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Tumhe kya pasand hai

by Anurag Gupta, 05 Apr 2025

वो पूछती है, "तुम्हें मुझमें क्या पसंद है?"
और मैं बस चुप रहकर मुस्कुरा देता हूँ,
क्या बताऊँ, कहूँ तो कैसे कहूँ,
कि हर लम्हा बस तुम्हें ही सोचता हूँ।

मुझे पसंद है तुम्हारी शैतानियाँ,
बेवजह की मासूम मनमानियाँ,
कभी गुस्से में होंठ चबाना,
फिर खुद ही खुद को मनाना।

मुझे पसंद है वो उलझी लटें,
जिन्हें बार-बार कान के पीछे रखना,
फिर लापरवाही से कह देना,
"अरे, रहने दो उड़ने दो ना!"

मुझे पसंद है तुम्हारी हँसी,
जो कभी खिलखिलाहट, कभी संकोच लगती है,
कभी बारिश के पहले की ठंडी हवा,
तो कभी बचपन की कोई मीठी सोच लगती है।

मुझे पसंद है तुम्हारा रूठना,
बिना बात घंटों चुप रहना,
फिर मेरी बेचैनी पर हँस देना,
और कहना, "अच्छा, बस अब मान भी जाओ ना!"

मुझे पसंद है तुम्हारी बातें,
जो कभी तर्क, कभी तुक होते हैं,
कभी पूरी रात जागकर,
ख्वाबों में खो जाने के हक़ होते हैं।

मुझे पसंद है वो चाय की चुस्की,
जिसमें तुम्हारे होंठों की गर्मी रहती है,
और जो कप तुम छोड़ जाती हो,
उसमें तुम्हारी खुशबू बहती है।

मुझे पसंद है तुम्हारा नाम भी,
जैसे कोई पुरानी ग़ज़ल की धुन,
जिसे हर बार सुनकर भी दिल कहे,
"बस एक बार और सुन!"

वो फिर पूछती है, "इतना ही?"
और मैं फिर बस मुस्कुरा देता हूँ,
क्या कहूँ
तुम्हारी हर बात में मैं बस खुद को खो देता हूँ।